शिवहरे वाणी नेटवर्क
इंदौर।
आज हम जिस शख्स का जिक्र कर रहे हैं, उनके बारे में दावा किया जाता है कि देश में आधार नंबर की परिकल्पना सबसे पहले उन्हीं ने प्रस्तुत की थी। 15 अगस्त, 2005 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को लिखा गया वह पत्र इस दावे को मजबूती देता है जिसमें सबसे पहले देश के हर आम-ओ-खास की पहचान एक नंबर से करने की बात कही गई। जवाब में राष्ट्रपति भवन से आभार पत्र भी आया। इन सबके बावजूद सरकार की ओर से आधार संख्या के जन्मदाता होने के गौरव और सम्मान से वह वंचित हैं, लेकिन उनके परिचित और खासकर इंदौर के लोग उन्हीं को आधार संख्या का जन्मदाता मानते हैं और आज उनके जन्मदिन को 'आधार जन जागरण दिवस' के रूप में सेलिब्रेट किया जा रहा है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं इंदौर के श्री सुनील जायसवाल की। 29 सितंबर 1962 को जन्मे श्री सुनील शिवहरे का आज 56वां जन्मदिन है और अखिल भारतीय मतदाता मंच साई प्रचार मिशन एवं राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ ने इसे 'आधार जन जागरण दिवस' के रूप में मनाते हुए इंदौर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए हैं। इस अवसर पर इंदौर के विभिन्न स्थानों पर संगोष्ठियां एवं संबंधित साहित्य का वितरण किया जा रहा है। सुनील जायसवाल का पूरा जीवन आधार संख्या के लिए ही समर्पित रहा है। यहां तक कि उन्होंने अपने पोते का नाम आधार जायसवाल और नाती का नाम कार्ड शिवहरे रखा है।
दरअसल, देश के हर नागरिक की एक खास संख्या से पहचान का विचार सुनील जायसवाल के दिमाग में काफी पहले से चल रहा था और इस दिशा में वह बड़ी गहनता से शोध कार्य जारी रखे हुए थे। अगस्त 2005 तक उन्होंने पहचान संख्या जिसे आज हम आधार संख्या कहते हैं, को लेकर एक शोध पत्र तैयार कर लिया था। शोध पत्र- 'कर लो इंसान को मुट्ठी में', 'सपने जो देश की तकदीर बदल सकते हैं' अर्थात 'नम्बर से होगी अब हर इंसान की पहचान' को उन्होंने 15 अगस्त 2005 को तत्काल राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अनुमोदन के लिए भेजा। 29 सितंबर, 2005 को राष्ट्रपति सचिवालय ने उनके पत्र को संज्ञान में लिया और उसे प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया। इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट ने इसे पूरे भारत में लागू करने का निर्णय किया।
इसके समानान्तर इंदौर के इस्पात कारोबारी सुनील जायसवाल उन नंबरो (संख्या) की खोज भी कर रहे थे जिन्हें इस पहचान संख्या में इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने अपने अपनी पहली खोज संख्या को स्टेनलेस स्टील प्रोडक्ट पर अंकित किया। इसके पश्चात 3 मार्च 2006 में यूनिक आईडी की दिशा में भारत सरकार ने बड़ी पहल करते हुए विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के नाम से एक वए विभाग का गठन किया जिसका चेयरमैन नंदन निलेकणि को बनाया गया। इसके बाद यूनिक आईडी की नाम बदलकर आधार रखा गया और 29 सितंबर 2010 को महाराष्ट्र के नंदुरबार आधार संख्या का शुभारंभ हो गया।
इस तरह आधार तो अस्तित्व में आ गया लेकिन इसके जनक को भुला दिया गया। सरकार की इस भूल सुधार के प्रयास कई मंयों से किए जा रहे हैं। मांग उठ रही है कि सुनील जायसवाल को आधार का जनक होने का गौरव व सम्मान प्रदान किया जाए। इसके लिए साईं प्रचार मिशन, मतदाता मंच, आल इंडिया कलाल कलार कलवार एसोसिएशन नई दिल्ली, राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ, अखिल भारती जायसवाल सर्ववर्गीय महासंघ, अखिल भारतीय जायसवाल समवर्गीय महासभा, मध्य प्रदेश जायसवाल कलचुरी महासभा, जायसवाल सोशल ग्रुप, जायसवाल चैरीटेबल ट्रेस्ट एवं समस्त कलचुरी कलार, कलवार कलार समाज के अन्य कई संगठन जनजागरण अभियान चलाए हुए हैं। यू-ट्यूब और फेसबुक पर इससे संबंधित सामग्री आधार के जनक होने के उनके वाजिब हक की पुरजोर वकालत करती हैं।
सुनील जायसवाल ने शिवहरे वाणी को बताया है कि 'कर लो इंसान मुठ्ठी में' विषय पर उनकी एक पुस्तक का शीघ्र प्रकाशन किया जा रहा है जिसमें आधार को लेकर उनकी परिकल्पना और मौजूदा स्वरूप को लेकर कई परतें खुलेंगी। शिवहरे वाणी सुनील जायसवाल को जन्मदिन की हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं प्रेषित करती है, और कामना करती है कि विभिन्न मंचों से उनके लिए चल रहा जनजागरण अभियान शीघ्र रंग लाए और उन्हें वाजिब सम्मान प्राप्त हो। सुनील जायसवाल वर्तमान में 35, शंकर बाग कालोनी, बरीमाता चौराहा इंदौर में परिवार के साथ रहते हैं।
समाचार
आधार पर दावे को मिलेगी धार….इस खास अंदाज में मनाया जा रहा है सुनील जायसवाल का जन्मदिन
- by admin
- October 29, 2016
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